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सदाबहार हरियाली से भरा छोटा काशी है राजस्थान का ये शहर, जानें यहां की खासियत


विश्र्वप्रसिद्ध ब्रिटिश फोटोग्राफर राइटर वर्जीनिया फास ने अपनी पुस्तक 'द फोर्ट्स ऑफ इंडिया' में बूंदी की तारीफ में लिखा है, 'बूंदी के महलों जैसा मानव निर्मित विहंगम, परिवर्धित व परिष्कृत नजारा इस धरा पर कहीं भी देखने को नही मिलता।' यहां यह बात कहने की जरूरत इसलिए पड़ी, जिससे आप यह अनुमान लगा सकें कि देश की रंग-बिरंगी विरासतों का सम्मोहन दुनिया भर में किस कदर है और उसमें बूंदी कहां है। वैसे, इस नगरी को 'छोटी काशी' के नाम से भी जाना जाता रहा है। दरअसल, बूंदी के नजदीक ही एक स्थान कंचन धाम गेंडोली है जहां नदी किनारे सैकड़ों शिवलिंग प्राकृतिक रूप से पाए जाते हैं। इसीलिए इस जगह को 'छोटी काशी' की संज्ञा मिली है।
दो भागों में बंटा दुर्ग
यहां के दुर्ग में गिरि दुर्ग और स्थल दुर्ग की विशेषताएं जुड़ी हैं। इसके चार दरवाजे हैं-पाटनपोल, भैरवपोल, शुकुलवारी पोल एवं चौगान। एक तरह से यह दुर्ग दो भागों में बंटा है। ऊपरी भाग को तारागढ़ कहा जाता है। जहां तारागढ़ फोर्ट है और नीचे के भाग को गढ़ कहते हैं। 
बूंदा मीणा के नाम पर नामकरण
इस शहर की स्थापना राव देवाजी ने 1242 ई. में की थी। कहा जाता है कि मीणा समाज में एक सरदार हुए थे, जिनका नाम बूंदा मीणा था। उनके नाम पर ही इस नगर का नाम बूंदी पड़ा। बूंदी शहर राजस्थान के हाड़ौती क्षेत्र में आता है।


हाडी रानी की कहानी
राजस्थान की धरती जहां वीर योद्धाओं की कहानियां सुनाती है, वहीं बूंदी की एक बेटी की कहानी यहां के लोग सुनाते हैं। यहां एक ऐसी रानी भी हुई हैं, जिन्होंने युद्ध में जाते अपने पति को निशानी मांगने पर अपना सिर काट कर भिजवा दिया था। यह रानी बूंदी के हाड़ा शासक की बेटी थी और उदयपुर (मेवाड़) के सलुम्बर ठिकाने के रावत चुंडावत की रानी थीं। शादी होते ही उनके पति रावत चुंडावत को मेवाड़ के महाराणा राज सिंह से औरंगजेब के खिलाफ मेवाड़ की रक्षा का फरमान मिला। नई-नई शादी होने और अपनी रूपवती पत्‍‌नी को छोड़कर रावत चुण्डावत का तुंरत युद्ध में जाने का मन नहीं हो रहा था, यह बात रानी को पता लगते ही उसने तुंरत रावतजी से मेवाड़ की रक्षा करने का आग्रह किया। युद्ध में जाते समय रावत चुंडावत ने अपने सेवक से रानी की कोई निशानी लाने को कहा। सेवक के निशानी मांगने पर यह सोच कर कि कहीं उसके पति पत्‍‌नी मोह में युद्ध से विमुख न हो जाए, वीर रानी ने अपना शीश ही काट कर निशानी के तौर पर भेज दिया। कहा जाता है कि रावत चुंडावत ने अपनी पत्‍‌नी का कटा शीश गले में लटकाकर औरंगजेब की सेना के साथ भयंकर युद्ध किया और वीरतापूर्वक लड़ते हुए मातृभूमि के लिए शहीद हो गए।
हाथी पोल: भव्यता का प्रतीक
बूंदी में गढ़ पैलेस के लिए जाने वाली खड़ी चढ़ाई दो मुख्य द्वारों पर समाप्त होती है, जो प्रवेश के लिए उपयोग की जाती है। इन दो द्वारों में से सबसे लोकप्रिय हाथी पोल है। यह द्वार एक विशाल वास्तुशिल्प का नमूना है, जो भव्यता की भावना पैदा करता है। इस द्वार में दो हाथी हैं। इस द्वार को भी राव रतन सिंह द्वारा निर्मित कराया गया था। गढ़ पैलेस के प्रवेश द्वार को चिह्नित करते हुए हाथी पोल बूंदी में आकर्षण का एक प्रमुख केंद्र है।
कब और कैसे जाएं
बारिश और सर्दी के समय आप यहां की खूबूसूरती को तसल्ली से निहार सकते हैं। बूंदी कोटा शहर से लगभग 35 किमी दूर है। सड़क मार्ग से कोटा से एक घंटे में बूंदी पहुंच सकते हैं। कोटा रेलमार्ग से देश के सभी बड़े शहरों से जुड़ा है। कोटा में स्थित एयरपोर्ट भी बूंदी से अधिक दूर नहीं है।

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